ग़म में डूबे खुदी को
अब ग़म ही नज़र नहीं आता
तुम्हारे होने न होने का
अब निशाँ नज़र नहीं आता
शिद्दत से तुम्हे भूलाने का
वक़्त नज़र नहीं आता
और वक़्त आ भी जाए
तोह लम्हा नज़र नहीं आता
अपने आप से तुम्हारी बातें किया करते थे
अब वोह जूनून नज़र नहीं आता
तुम्हारे नाम पे झूम उठा करते थे
अब वोह सुकून नज़र नहीं आता
तुम्हारे अधूरे सपनों का
लाल रंग नज़र नहीं आता
जिस चाहत से रंगा था ज़िन्दगी को
खुद ही में चिप्पा वोह रंगरेज़ नज़र नहीं आता
बेवजह फूलों को चूमने का
फितूर नज़र नहीं आता
जहान को महकाने वाला
अब वोह इत्तर नज़र नहीं आता
दिवाली के दिए सा रोशन
वोह इश्क़ नज़र नहीं आता
अब चाहे किसी भी आसमान में ढूंढे
ईद का चाँद नज़र नहीं आता
एक और रंजिश ही सही कहते हैं
पर तुम्हारा ज़िक्र नज़र नहीं आता
फिर भी तुम्हरी मोहब्बत से निकलने का
अब कोई फ़िक्र नज़र नहीं आता
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