यह कैसा कश्म-कश हैं
ना तुम चुप हो
ना हम चुप हैं
पर जो दरमियाँ
ख़ामोशी गूंजती हैं
उसको ना तुम सुनो
ना हम सुने
आओ इनको सुनकर भी
अनसुना कर दे
वह जिसके परछाई तले
हम झूम रहे हैं
उस धीमे इज़हार को
अनकहा कर दे
क्यूंकि जिन लफ़्ज़ों की बाहों में
हमारी बातें बोल जाए
उन्हें तलाशने की ज़ेहमत
ना तुम में हैं ना मुझ में
"हमे प्यार हैं"
यह कहने की नज़ाकत
ना तुम में हैं ना मुझ में
फिर भी चले जातें हैं
आग से खेलने
की शायद कोई तूफ़ान
बारिश गिरा दे
की शायद कहीं से कोई फर्याद
हमे मिला दे
तोह चलो फिर जुड़ जाते हैं इस कारवाँ से
जिनकी रातें में हीर-रांझा के किस्से भी हैं
और लैला-मजनू की तड़प भी
जहां कहीं पर कभी कभी
मिले सन्नाटे
कभी मेले
चलो चलते हैं इन राहों पे
तुम्हारे साथ मैं
और मेरे साथ तुम
फिर भी दोनों ही अकेले
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